Sonepur Mela 2023: इतिहास, धार्मिक मान्यताएं, सोनपुर मेले से जुड़े हुए अन्य तथ्य
सोनपुर मेला बिहार के सोनपुर इलाके में हर साल Kartik Purnima अर्थात नवंबर दिसंबर के समय लगाया जाता है। यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला होता है और इस मेले को हरिहर क्षेत्र मेले के नाम से भी जाना जाता है। सोनपुर के स्थानीय लोग इस मेले को छत्तर मेले के नाम से पुकारते हैं। इस मेले में देश भर से व्यापारी आते हैं और पशु मेलों में एक अलग पहचान प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। यह मेला बाकी मेलों के उलट कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के पश्चात शुरू किया जाता है। पशु कारोबार को प्रफुल्लित करने के लिए इस मेले का काफी योगदान होता है।
सोनपुर पशु मेले में ना केवल पशुओं की बोली लगाई जाती है बल्कि यहां पर नौटंकी और नाच आदि भी पेश किए जाते हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और यहां पर काफी भीड़ इकट्ठी हो जाती है। सोनपुर मेले में भू राजस्व विभाग द्वारा भी स्टाल लगाए जाते हैं और राजस्व ग्रामों के डिजिटल मानचित्र ₹150 में लोगों को 3 मिनट के अंदर अंदर प्रदान कर दिए जाते हैं। मध्य एशिया से व्यापारी फारसी नस्ल के घोड़े, हाथी और ऊंट आदि जैसे पशु बाजार में लेकर आते हैं। इस मेले में विक्रेता ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपने पशुओं को काफी सजाकर लेकर आते हैं। सोनपुर का मेला इसीलिए ज्यादा प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर पशुओं की खरीद-फरोख्त के साथ-साथ मनोरंजक गतिविधियां भी होती हैं और इसमें सरकारी विभागों द्वारा भी स्टाल लगाए जाते हैं जो कि आकर्षण का केंद्र होते हैं।
सोनपुर मेला पिछले कुछ वर्षों से ऑटो एक्सपो में ले के रूप में जाना जाने लगा है क्योंकि इसमें पिछले कुछ सालों से कई कंपनियां अपने शोरूम तथा बिक्री केंद्र भी खोल रही हैं। मेले में रेल ग्राम प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। मेले में स्थानीय लोग तो शामिल होते ही हैं, साथ में यहां पर सरकारी विभाग भी शामिल होते हैं क्योंकि यह एक व्यापारिक मेला है और कारोबार के लिए काफी अच्छा है।
सोनपुर मेले का इतिहास
सबसे पहले सोनपुर मेले के बारे में जॉन मार्शल ने 6 नवंबर, 1671 ने ज़िक्र किया था। उन्होंने लिखा था कि गंगा स्नान और मेले के लिए उस समय लगभग 40 हज़ार से 50 हज़ार लोग शामिल हुए थे। पुराने जमाने में इस मेले की शुरुआत जंगली हाथियों की खरीद-फरोख्त करने के लिए की गई थी। यह जंगली हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर तथा 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिंह ने भी सोनपुर मेले से ही हाथी खरीदे थे। 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े का सबसे बड़ा तबेला बनवाया था और एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मलिका गुलाब भाई का जलवा बहुत मशहूर हुआ करता था; लोग दूर-दूर से उनकी नौटंकी देखने के लिए आया करते थे।
सरकारी आंकड़ों में सोनपुर मेला
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2001 में यहां पर 92 हाथी, 15035 घोड़े तथा 100000 बैल खरीदे और बेचे गए।
- वर्ष 2004 में 354 हाथी, 15035 घोड़े, 100000 बैल खरीदे और बेचे गए।
- वर्ष 2007 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 77 हाथी, 8580 घोड़े, 100000 बैल खरीदे और बेचे गए।
- सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में 39 हाथी, 5580 घोड़े, 1 लाख खरीदे और भेजे गए।
- जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में यहां से 17 हाथी, 4580 घोड़े और 100000 बैल खरीदे तथा बेचे गए।
- वर्ष 2016 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 13 हाथी, 4020 घोड़े, 100000 बैल खरीदे और बेचे गए।
- वर्ष 2017 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 हाथी, 5400 घोड़े, 100000 बैल खरीदे और बेचे गए।
सोनपुर मेले से जुड़ी हुई धार्मिक मान्यताएं
सोनपुर मेले से न केवल व्यापारिक कारण जुड़े हुए हैं बल्कि इस मेले से कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा का परिचय देता है। लोगों की आस्था के अनुसार केंद्र में हरिहर नाथ का एक मंदिर है, जहां पर लोग श्रद्धा भाग से भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी जगह पर कौन हारा घाट के गंडक नदी में एक हाथी को एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। दोनों में काफी देर तक लड़ाई हुई और हाथी को मगरमच्छ ने बुरी तरह जकड़ लिया। उस समय भगवान विष्णु को हाथी ने याद किया भगवान ने प्रकट होकर स्वयं हाथी की रक्षा की। इसीलिए सोनपुर में हरिहर क्षेत्र में कई संप्रदायों में आस्था के केंद्र के तौर पर भगवान विष्णु के मंदिर स्थापित हैं।
सोनपुर मेले से जुड़े हुए अन्य तथ्य
- इस मेले में ना केवल पशुओं की बिक्री की जाती है, बल्कि लोकनाट्य भी पेश किए जाते हैं।
- लोगों की समस्याओं को भी दर्शाने के लिए नाटकों द्वारा अभिनय पेश किया जाता है।
- कलाकारों द्वारा रंगारंग प्रोग्राम पेश किए जाते हैं और सांस्कृतिक तथा आधुनिकता के रंग में डूबे हुए कलाकार अपना अद्भुत नृत्य पेशकरके लोगों का मनोरंजन करते हैं।
- मेले में बिहार की झलकियां भी दिखाई जाती हैं जिससे पता चलता है कि बिहार संस्कृति से जुड़ा हुआ एक राज्य है और यहां पर आज भी परंपराओं को पूरी मान्यता दी जाती है।
- यदि पुराने समय की बात करें तो राजा महाराजाओं द्वारा यहां पर घोड़े और हाथी आदि भी बेचे और खरीदे जाते थे।मौर्य काल से लेकर अंग्रेजों के शासन काल तक पशुओं की खरीद बेच इसी मेले के माध्यम से की जाती थी।
- कार्तिक पूर्णिमा के समय पर लाखों श्रद्धालु जब मोक्ष की कामना के साथ पवित्र गंगा और गंडक नदी में डुबकी लगातेहै, उसके बाद से ही यह है सोनपुर मेला शुरू कर दिया जाता है।
- पारंपरिक दुकानों के साथ-साथ यहां पर नामी-गिरामी कंपनियां भीअपने सामान के स्टॉल लगाती हैं।
- मेले में रोजमर्रा की जरूरत से लेकरसौंदर्य पदार्थ तक सब कुछ मिलता है।
- सोनपुर मेले में ग्राम श्री मंडप, अपराध अनुसंधान, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, आर्ट एंड क्राफ्ट द्वारा भी प्रदर्शनी लगाई जाती हैं।
- सरकारी भवन द्वारा ग्रामीण परिवेश की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनी लगाई जाती है।
- सोनपुर मेला कई दिनों तक चलता है, इस मेले में बड़े बड़े राज्य नेता भीशामिल होते हैं।
Sonepur Mela 2023 Date
सोनपुर मेला आमतौर पर हर साल नवंबर से दिसंबर के बीच आयोजित किया जाता है। यह मेला लगातार कई दिनों तक लगाया जाता है।
इस वर्ष के सोनपुर मेला 20 नवंबर से 05 दिसंबर के बीच आयोजित की जा रही हैं।