Jur Sital 2024: जुड़शीतल फेस्टिवल की शुरुआत, जुड़शीतल त्यौहार के दौरान ध्यान रखने वाली बातें, जुड़शीतल तिथि
बिहार में ऐसे कई स्थान हैं जहां पर परंपराओं का पूरा ध्यान रखते हुए पुरातन त्यौहार मनाए जाते हैं। ऐसे कई समुदाय हैं जो अलग प्रकार से अपने त्यौहार मनाते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह अपनी परंपरा से बहुत ही मन से जुड़े हुए हैं। इसी परंपरा का एक भाग है मिथिला का परंपरागत त्यौहार जुड़शीतल जो कि नए साल का आगमन होता है।
जुड़शीतल मैथिली समुदाय द्वारा मनाया जाता है यह एक प्रकार से मैथिली नव वर्ष होता है और इस वर्ष पर दोस्तों रिश्तेदारों को शुभकामनाएं दी जाती हैं। बिहार के मिथिला में विशेष रूप से यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि यहां पर जुड़ शीतल का काफी ज्यादा महत्व होता है। पारंपरिक पंचांग के अनुसार यह है नए वर्ष का पहला दिन माना जाता है, जिसके अनुसार भारत और नेपाल के मैथिली समुदाय नया वर्ष मनाते हैं।
रबी की फसल की कटाई की खुशी में किसान बैसाखी का पर्व मनाते हैं, बिल्कुल इसी प्रकार से मिथिला में इस पर्व को मनाया जाता है और इस दिन गुड और सत्तू के साथ ऋतु फल और पानी से भरे हुए घड़ों का दान किया जाता है।
लोग एक दूसरे को नए साल की बधाई देते हैं और खुशियां बांटते हैं। इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों के सिर पर जल का छोटा देते हैं और साथ ही पेड़ पौधों की सिंचाई भी की जाती है। घरों में स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं और सभी लोग मिलजुलकर इस का आनंद लेते हैं।
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जुड़शीतल फेस्टिवल की शुरुआत
- जुड़ शीतल फेस्टिवल की शुरुआत बड़े बुजुर्गों के द्वारा अपने परिजनों के सिर पर शीतल जल डालकर की जाती है।
- गर्मी बढ़ने के साथ अधिक से अधिक जल सेवन किया जाता है और ध्यानआकर्षित करने के लिए कादो माटी अर्थात कीचड़ मिट्टी का खेल खेला जाता है। इस त्यौहार के आरंभ से ही शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य भी आरंभ कर दिए जाते हैं।
- लोग एक दूसरे के शरीर पर मिट्टी और कीचड़ लगाती हैं।
- ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी के लेप से तीखी धूप के कारण बढ़ने वाले त्वचा रोग से बचाने के लिए ही इसका उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदाचार्य के अनुसार भी तालाब नदी की तलहटी की मिट्टी का लेप त्वचा पर लगाने से पुराने से पुराने त्वचा रोग से मुक्ति मिल जाती है।
- यह परंपरा से जलाशयों कीसंभाल का भी संदेश मिलता है।
- इस त्यौहार से 1 दिन पहले रात के समय बर्तनों में पानी भर लिया जाता है ताकि गर्मी में पानी की किल्लत ना हो।
- फेस्टिवल के दिनधूल के गुब्बार से बचने के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जाता है, जिसका क्रम पूरे महीने तक लगातार चलता है।
- जुड़शीतल में छोटे पौधों से लेकर बड़े वृक्षों तक से पानी डाला जाता है और तुलसी के पौधे पर तो विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है।इससे यही संदेश लोगों तक पहुंचता है कि पेड़ पौधों का ध्यान रखना भी जरूरी है क्योंकि यह एक पारंपरिक फेस्टिवल है जो कि पर्यावरण के लिए भी समर्पित है।
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जुड़शीतल त्यौहार के दौरान ध्यान रखने वाली बातें
मैथिली समुदाय द्वारा यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान भी रखा जाता है जो कि निम्न लिखित प्रकार हैं:
- जुड़ शीतल के दौरान मिथिला में चूल्हा नहीं जलाया जाता।
- त्योहार के एक दिन पहले यानीसतुआनी की रात को तैयारी आरंभ कर दी जाती है।
- सतवानी की रात को बड़ी बात का प्रसाद तैयार करते हैं और अपने इष्ट को भोग लगाकर ग्रहण करते हैं।
- इस बात का ध्यान रखा जाता है कि यह भोजन बहुत ही ज्यादा मात्रा में बनाया जाए और अगले दिन भी इसी का इस्तेमाल किया जाए ताकि चूल्हा जलाने की जरूरत ही ना पड़े।इस परंपरा को लोग बिसया पबिन भी कहते हैं। यदि चूल्हे पर कुछ रखना भी है तो चूल्हे पर दही, बासी बड़ी एवं भात चढ़ाने की परंपरा है।
- इस त्यौहार की शुरुआत भयंकर गर्मी में होती है इसलिए इस के स्वागत के लिए बड़े बुजुर्ग सुबह-सुबह छोटों के सिर पर बासी जल देकर शीतलता के साथ जीवन जीने का आशीर्वाद देते हैं ताकि वह हर समय ठंडे स्वभाव वाले बने रहे।
- इस दिन साफ सफाई पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है और पूरे मार्ग की सफाई की जाती है।सड़कों पर जल का छिड़काव करना भी अनिवार्य माना जाता है।
- जुड़शीतल के अवसर पर भारतीय भोजन करने की परंपरा है इसलिए इसका पालन सभी लोगों द्वारा किया जाता है अर्थात भोजन रात में ही तैयार कर लिया जाता है और उसी का इस्तेमाल जुड़ शीतल के दिन किया जाता है ताकि किसी भी कारण से घर का चूल्हा ना जलाना पड़े, यह उनकी परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- इस त्यौहार में बड़े-बड़े मिलजुल कर रहने का आशीर्वाद देते हुए हर्षोल्लास से त्योहार मनाते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ही सादगी से और संजीदगी से इस त्यौहार को मनाया जाता है और बासी खाना खाने के पीछे भी वैज्ञानिक तर्क ही बताया जाता है।वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार चंद्रमा और सूर्य की चाल इस त्योहार के समय नक्षत्र और राशि में इस तरह से हो जाती है कि जो कीटाणु खाद्य पदार्थों को खराब करते हैं, वह सक्रिय नहीं हो पाते, जिस से खाद्य पदार्थ खराब होने की कोई संभावना ही नहीं रहती।
- इसी दिन सेसौर वर्ष की भी शुरुआत हो जाती है अर्थात वैशाख की शुरुआत हो जाती है। पर्यावरण को बचाने का संदेश भी इस त्यौहार से जुड़ा हुआ है।
- जुड़ शीतल के अवसर पर घरों एवं शिवालयों में गिल्टी का जिसे की बनी शाला कहा जाता है, की स्थापना की जाती है।ऐसी मान्यता है कि तुलसी के पौधे में सभी देवताओं का वास होता है इसलिए हर घर के आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य लगाया जाता है।
- जुड़ शीतल पर बच्चों द्वारा होली की तरह ही त्यौहार मनाया जाता है जिसे की धूरखेल कहा जाता है।विशेष तौर पर लोगों द्वारा जल पात्रों वस्त्रों की सफाई की जाती है क्योंकि इस त्योहार पर जल देवता का भी आभार प्रकट किया जाता है।
Jur Sital 2024 Date
जुड़शीतल त्यौहार 14 अप्रैल, 2024 को Sunday के दिन होगा, जोकि मिथिला में नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।