Karam Puja 2023 Jharkhand: Date, कर्म फेस्टिवल के दौरान की जाने वाली पूजा विधि
झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां पर पेड़ पौधों की पूजा की प्रथा बहुत समय से चली आ रही है। यह परंपरा काफी पुरानी है और इस परंपरा को सभी समुदाय निभाते आए हैं। पेड़ पौधों की पूजा करने के लिए एक विशेष त्योहार झारखंड में मनाया जाता है, जिसका नाम है ‘कर्म फेस्टिवल’। कर्मा फेस्टिवल झारखंड का एक काफी प्रसिद्ध और प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार ना केवल झारखंड बल्कि बिहार उड़ीसा पश्चिम बंगाल तथा छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है। कर्मा फेस्टिवल सितंबर में एकादशी के दिन या उसके आसपास के दिनों पर मनाया जाता है। इस फेस्टिवल के दौरान लोग प्रकृति अर्थात पर्यावरण की पूजा करते हैं और अच्छी फसलों की कामना करने के साथ-साथ अपने भाई बहनों की सुरक्षा के लिए भी प्रार्थना करते हैं। इस दौरान काफी बड़े बड़े आयोजन किए जाते हैं, जहां पर लोग ढोल की थाप पर झूमते/ नाचते हैं।
इस दौरान एक खास प्रकार का नृत्य किया जाता है जिसे की कर्म नाच कहा जाता है, यह नृत्य कर्मा फेस्टिवल की मुख्य प्रस्तुति होता है। छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में रहने वाले आदिवासी तथा गैर आदिवासी समुदायों के लोग विशेष तौर पर कर्मा फेस्टिवल पर बहुत ही धूमधाम से नृत्य करते हैं। यह त्योहार पर्यावरण की पूजा का त्यौहार होता है और इसको शुरू करने की परंपरा यही थी कि किसानों द्वारा बोली गई फसलें कभी बर्बाद ना हो और हर साल ज्यादा से ज्यादा फसलें हो और लोगों को फसलों के जरिए धन प्राप्ति हो। इसी कामना को पूरा करने के लिए पर्यावरण की पूजा की जाती है और प्रकृति नहीं जो कुछ भी दिया है उसके लिए उसका आभार भी प्रकट किया जाता है।
कर्म फेस्टिवल के दौरान की जाने वाली पूजा विधि
- इस त्यौहार की समय लोग अपने घरों के आंगन की साफ सफाई करते हैं।
- साफ सफाई करने के बाद बहुत ही विधि पूर्वक कर्म डाली को आंगन में गाड़ देते हैं।
- इसके बाद उस स्थान पर गोबर से लीपा जाता है क्योंकि गोबर से लीपना शुभ माना जाता है।
- इसके पश्चात बहने सजी हुई टोकरी तथा थाली लेकर पूजा करने के लिए आंगन के चारों तरफ कर्म राजा (कर्म वृक्ष की डाली) की पूजा करने के लिए बैठ जाती हैं।
- कर्म राजा की पूजा करते समय वह अपने भाइयों की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
- कर्म पूजा बड़े बुजुर्गों की तरफ से कराई जाती है, इस पूजा की समाप्ति के बादकर्म कथा सुनाई जाती है।
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Karam Puja कथा
पूजा की समाप्ति के बाद कर्म कथा सुनाई जाती है, इस कथा के अनुसार झारखंड में कर्मा और धर्मा नाम के दो भाई रहते थे। कर्मा लोगों को कर्म की महत्वता बनाए रखने के लिए रास्ता दिखाता था जबकि धर्मा लोगों को शुद्ध आचरण तथा धार्मिक जीवन का मार्ग दिखाता था। इन दोनों भाइयों में से कर्म को लोग देव स्वरूप मानते थे और इसलिए उन्हें खुश करने के लिए लोग उनकी पूजा अर्चना करते थे और हर साल उनके सामने नृत्य भी पेश किया जाता था। उसी परंपरा को लोगों ने सदैव याद रखा और अभी तक इस त्यौहार को इसी तरह मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों से संबंध रखने वाली जनजातियों के अनुसार राजा कर्म से ने अपने ऊपर विपत्ति पड़ने पर इष्ट देव को मनाने के लिए पूरी रात नृत्य किया था जिस वजह से उनकी विपत्ति दूर हो गई थी इसीलिए यह त्यौहार कब से प्रसिद्ध है। झारखंड की कुछ जनजातियां यह मानती है कि कर्मी नामक एक वृक्ष पर कर्मसेनी देवी रहती है और यदि उन्हें प्रसन्न किया जाए तो इससे घर में सुख समृद्धि आती है। देवी को खुश करने के लिए ही लोग घर में गर्मी वृक्ष की डाली लगाकर उसकी पूजा करते हैं और रात भर नृत्य की प्रस्तुति की जाती है। छत्तीसगढ़ में ही रहने वाली उरांव जनजाति के अनुसार कर्म देवता से अच्छी फसल की अपेक्षा की जाती है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए लोगों द्वारा नृत्य किया जाता है।
इस त्यौहार से संबंधित एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक शहर में एक महाजन रहता था। उस महाजन के 7 पुत्र थे। महाजन की मृत्यु हो गई और 1 दिन उन भाइयों ने आपस में यह विचार किया कि उन्हें व्यापार करने के लिए अलग-अलग राज्यों में जाना चाहिए। यह तय करने के बाद सबसे छोटे भाई को घर में छोड़कर बाकी सारे भाई व्यापार करने के लिए चले गए। रास्ते में चलते चलते उन्हें जहां पर भी रात हो जाती थी वह लोग वहीं पर विश्राम कर लेते थे। जिस जगह पर उन्हें जो भी सस्ता सामान मिलता था वह वही खरीद लेते थे और जहां पर उन्हें लगता था कि वह महंगा बेच सकते हैं वहां पर वह सामान महंगा बेच देते थे। इसी तरह करते करते उन्हें पूरा 1 साल हो गया और उन्होंने बहुत सारा धन दौलत कमा लिया।
सारा सामान तथा धन बैलगाड़ी में भरकर वह अपने घर में वापस आ गए। जब वह भाई गांव के नजदीक पहुंचे, तो सबसे बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को घर पर भेजा। घर पर पहुंच कर उसने देखा कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था और उनके आंगन में लोग करमा नृत्य कर रहे थे। सातों देवरानी जेठानी एक दूसरे का हाथ पकड़कर गोल घेरे में नाच रहे थे और छोटा भाई उन सबके बीच में झूम झूम कर मांदर बजा रहा था। जो भाई घर पर आया था वह भी नाचने लगा। काफी इंतजार करने पर बड़े भाई ने अपने दूसरे भाइयों को भी एक एक करके घर भेजा और सारे के सारे ही घर आकर करम नृत्य करने लगे। बड़ा भाई काफी ज्यादा परेशान हो गया क्योंकि उसे लगा कि वह जिसे भी घर भेज रहा है, कोई भी लौट कर वापस नहीं आ रहा।
यह बात सोचने के बाद वह गाय बैल तथा अपना सारा सामान रस्ते पर ही छोड़कर कुल्हाड़ी पकड़ कर अपने घर में गुस्से से दौड़ा। नृत्य वाला दृश्य उसने भी देखा परंतु उसे यह अच्छा नहीं लगा। इसलिए उसने कुल्हाड़ी से कर्म डाली को तोड़कर उसके 7 टुकड़े कर दिए। इस घटना को देखकर सभी भाई और लोग अपने-अपने कमरों में घुस गए, जब बड़ा भाई अपना सारा सामान तथा गाय बैल लेने के लिए पहुंचा तो उसे उस स्थान पर अपना कोई भी सामान नहीं मिला बल्कि वहां पर केवल पत्थर ही पड़े थे; परंतु अभी कुछ नहीं हो सकता था।
कई दिनों बाद जब खेती करने का समय आया तो सारे भाइयों ने अपने अपने हिस्सों में धान बीज दिया। छह भाइयों की धान की फसल तो काफी अच्छी हुई परंतु जो सबसे बड़ा भाई था उसकी फसल इतनी अच्छी नहीं हुई थी। भाइयों के खेतों के मोड़ पर करम देवता टहल रहे थे; कर्म देवता को देखकर बड़े भाई को गुस्सा आया और उसने टहलने का कारण पूछा। बड़े भाई की बात सुनने के बाद कर्म देता नहीं कहा कि वह उसके भाइयों का भाग्य है। बड़े भाई का भाग्य अच्छा नहीं है क्योंकि उसने कर्म के टुकड़े कर दिए थे। यह बात सुनने के बाद बड़े भाई को अपनी गलती का पछतावा हुआ। वह कर्म देवता से अपने गुनाह की माफी मांगने लगा। कर्म देवता को उस पर दया आ गई और उन्होंने कहा कि उसका कर्म सात समुद्र 16 धार के पार है। यह बात कहने के बाद वह वहां से चले गए।
इसके बाद बड़ा भाई कर्म की तलाश में निकल पड़ा। रास्ते में उसे एक महिला मिली, जिसके कूल्हे में बड़ा सा पीढ़ा चिपका हुआ था। उस महिला ने बड़े भाई से कहा कि कर्म देवता मिले तो वह महिला के दुख के बारे में भी उनसे बात करे। रास्ते में उसे एक और महिला मिली जिसके सर पर घास उगी हुई थी, उसने भी अपने दुख की बात बताई। चलते चलते बड़े भाई को नदी का किनारा मिला, वहां पर जैसे ही उसने पानी पीने के लिए पानी लिया तो उसे पानी की जगह खून नजर आया।
थोड़ी देर और आगे चलने पर उससे गाय से दूध पीने की कोशिश की परंतु वह उसमें भी असफल रहा। इसके बाद वह विश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया, वहां पर उसे घोड़ा मिला, उसने सोचा कि वह आगे का रास्ता घोड़े पर सवार होकर पूरा करेगा। परंतु यह भी उससे ना हो पाया। बड़े भाई ने मगरमच्छ से समुद्र पार करवाने के लिए कहा; मगरमच्छ ने भी बड़े भाई को मना कर दिया। बार-बार आग्रह करने पर मगरमच्छ ने बड़े भाई को समुद्र पार करवा दिया। वहां पर उसे कर्म देवता मिले और उसने कर्म देवता के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी जिस समय वह वहां पर पहुंचा था वह समय भाद्रपद शुक्ल पक्ष का ही था। उसने कर्म देवता के सभी के दुखों की बात की। देवता नहीं उन सभी के दुखों का निवारण बताया। वापसी पर आते समय बड़े भाई ने सभी लोगों के दुख दूर किए और घर पर पहुंच गया। घर पहुंचने पर उसने कर्म देवता की सेवा करनी शुरू कर दी और शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत रखकर विधि पूर्वक पूजा करने लगा। कर्म देवता उनसे प्रसन्न हुए और उन्होंने बड़े भाई को सुख समृद्धि का और सुख भरे जीवन का आशीर्वाद दिया।
कर्म फेस्टिवल झारखंड के दौरान किए जाने वाले कार्य
- इस दौरान बर्तनों में बालू भरकर बहुत ही कलात्मक तरीके से बर्तनों को सजाया जाता है और उसमें कुछ जौ डालकर डाल दिए जाते हैं, जावा कहा जाता है।
- व्रत रखने वाले व्यक्ति अपने सगे संबंधियों तथा पड़ोसियों को निमंत्रण देते हैं और शाम के समय कर्म वृक्ष की पूजा करते हैं; कर्म वृक्ष की पूजा के बाद वृक्ष की डालियों को काट दिया जाता है और यह ध्यान रखा जाता है कि वृक्ष की डालियां जमीन पर ना गिरे।कर्मा फेस्टिवल के समय भाई बहनों की सलामती के लिए व्रत रखे जाते हैं और व्रत रखने वाले व्यक्ति के भाई-बहन कर्म वृक्ष की डाली लेकर घर के आंगन में या फिर खेतों में गाड़ देते हैं; इसी डाली को प्रकृति का आराध्य देव माना जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है और उसके बाद सारे लोग रात भर नृत्य करते हैं और उत्सव मनाते हैं।
- अगले दिन सुबह नदी में जाकर इन डालियों को विसर्जित कर देते हैं।
कर्म फेस्टिवल के दौरान गाए जाने वाले गीत
- कर्म फेस्टिवल के दौरान विशेष गीत गाए जाते हैं, जिन्हें की करमजीत कहा जाता है।यह गीत बारिश शुरू होने के साथ शुरू कर दिए जाते हैं और उस समय तक गाए जाते हैं जब तक फसल नहीं कट जाती।
- कर्म गीत के दौरान बहुत ही सुंदर संबोधन ओं का इस्तेमाल किया जाता है।लोग एक दूसरे का नाम नहीं लेते बल्कि अलग-अलग प्यार भरे शब्दों का इस्तेमाल करके एक दूसरे को बुलाते हैं।
- गीत गाते समय मंदिर तथा ढोल आदि बजाए जाते हैं, मंदिर बजते ही सारे लोग एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं और नाचना शुरू कर देते हैं।झारखंड में कर्म गीत और नृत्य को जिस जगह पर शुरू किया जाता है, उस जगह को अंखरा कहा जाता है।
Karam Puja 2023 Date
Karam Puja 2023 Jharkhand will be celebrated from August to September 2023.