Sama Chakeva 2023: समाजिक बुराइयों का नाश, सामा चकेवा में होने वाले सारे कार्य, सामा चकेवा से जुड़ी हुई कथा

समय अपनी प्रवृत्ति से आधुनिक होता जा रहा है और इस आधुनिकता की दौड़ में कई ऐसे त्यौहार गायब हो गए हैं जिन्हें लोग अब जानते ही नहीं हैं। परंतु बिहार में ऐसा नहीं है वहां पर आज भी कई ऐसे त्योहार मनाए जाते हैं जो पुरातन परंपराओं से जुड़े हुए हैं। इन्हीं पुरातन परंपराओं से जुड़ा हुआ एक लोकनाट्य है, जिसे की सामा चकेवा कहा जाता है; जिसे बहुत ही धूमधाम से हर साल मनाया जाता है। यह त्यौहार एक प्रकार से भाइयों और बहनों का त्योहार है। 

सामा चकेवा बिहार का एक काफी प्रसिद्ध पर्व है। यह एक लोकनाट्य है जिसे बिहार में हर साल कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की समाप्ति से लेकर पूर्णमासी तक किया जाता है। इस लोकनाट्य में कुमारी कन्या अद्भुत अभिनय प्रस्तुत करती हैं। अभिनय में कन्याओं द्वारा सामा अर्थात ‘श्याम’ तथा चकेवा की भूमिका निभाई जाती है। इस लोकनाट्य में सामूहिक रूप से गीतों में प्रश्न पूछे जाते हैं और उत्तम के माध्यम से विषय वस्तु प्रस्तुत किया जाता है।

विशेष तौर पर मिथिला में रहने वाले लोग अपनी परंपरा को जिंदा रखते हुए इस प्रसिद्ध लोक उत्सव को मनाते आ रहे हैं। इस लोकनाट्य के दौरान ना केवल अभिनय किया जाता है बल्कि सामा चकेवा पूजा का प्रारंभ भी कर दिया जाता है। छठ के खरना दिन से ही पूजा आरंभ हो जाती है और छठ के आखिरी दिन तक  यह पूजा चलती रहती है। छठ के खाना दिन से ही लोकनाट्य भी शुरू हो जाता है और जो बहने सामा चकेवा नहीं बन पाती वह छठ के आखरी दिन  सामा चकेवा के रूप में अभिनय करती हैं। पूरे मिथिला में सांस्कृतिक  लोक गीत गाए जाते हैं और छठ के साथ ही इसकी भी पूरी तैयारी की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा की रात को सामा चकेवा का विसर्जन कर दिया जाता है।

समाजिक बुराइयों का नाश

सामा खेलने के दौरान शुक्ला चुगली को जलाया जाता है, इसको जाने के पीछे का उद्देश्य यही होता है कि अपन के प्रतीक के साथ-साथ सामाजिक बुराइयां भी खत्म हो जाए। सामा चकेवा की मूर्तियां होती हैं, जिन्हें की बहुत ही प्रेम से पूजा में शामिल किया जाता है और आखरी दिन पर इन्हीं का विसर्जन किया जाता है।

सामा चकेवा में होने वाले सारे कार्य

शाम में सामा चकेवा का बहुत ही अद्भुत सिंगार किया जाता है और खाने के लिए धान की बालियां दी जाती हैं। जैसे ही शाम होती है, गांव की लड़कियां और महिलाएं अपनी सखी सहेलियों की टोली बनाकर घरों से बाहर निकलती हैं और हाथ में बांस की बनी चंगेरा में मिट्टी की बनी सामा के साथ बाकी मूर्तियां जैसे कि पक्षी मूर्तियां आदि रखी जाती हैं।

रात में युवतियां खुले आसमान के नीचे शीत पीने के लिए छोड़ देती हैं। इस खेल के माध्यम से बहने अपनी भाभियों पर कटाक्ष भी करती हैं और प्रताड़ित बहन की पीड़ा को भी दर्शाती हैं। भाभियों की तरफ से भी लोकनाट्य में अभिनय पेश करते हुए उत्तर दिए जाते हैं। इस प्रकार लोकनाट्य काफी मनोरंजक हो जाता है।

सामा चकेवा से जुड़ी हुई कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पुत्री श्यामा की ऋषि कुमार चारुदत्त से शादी हुई थी। श्यामा जिसे सामा भी कहा जाता है, वह रात में अपनी दादी के साथ वृंदावन ऋषि मुनियों की सेवा करने के लिए उनके आश्रम में जाती थी। इस बात का पता श्री कृष्ण के दुष्ट मंत्री जबर को लग गया। उसने कुमार चारुदत्त को श्यामा के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया और झूठी बातें बताने लगा। ऐसी बातें सुनकर कुमार चारुदत्त को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने क्रोधित होकर श्री कृष्ण को सुनाने लगा। श्री कृष्ण ने गुस्से में श्यामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। श्यामा का यह रूप देख कर कुमार चारुदत्त ने भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। भगवान महादेव को प्रसन्न करके उसने भी पक्षी का रूप प्राप्त कर लिया।

यह जानकारी जब श्यामा के भाई श्री कृष्ण के पुत्र शाम को हुई, तो उसने अपने बहन बहनोई के उद्धार के लिए श्री कृष्ण की आराधना आरंभ कर दी। श्याम ने श्री कृष्ण से वर मांगा और वरदान मांगने पर श्रीकृष्ण को सारी सच्चाई पता लग गई। उन्होंने चारुदत्त और श्यामा को श्राप से मुक्ति प्राप्त करने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि श्याम एवं चारुदत्त मूर्ति बनाकर गीत गाए और कारगुजारीयों को उजागर करें इस तरह करने से श्यामा श्राप से मुक्त हो जाएगी। उन दोनों ने ऐसा ही किया और चारुदत्त और श्याम की मूर्तियां बनाकर गीत गाए तथा शिव की मूर्ति बनाकर चारों की कारगुजारी ओं को जगजाहिर किया, तभी से यह पर्व मनाया जाता है।

सामा चकेवा से जुड़े हुए अन्य तथ्य

  • सामा चकेवा के समयसभी लोग लोक नृत्य पेश करते हैं तथा संस्कृत के सबसे दिलचस्प पहलू अभिनय के द्वारा पेश करते हैं।
  • अधिकांश लोग नृत्य के साथ-साथ आम जनजीवन, भाई बहन के प्यार को अभिनय द्वारा पेश करते हैं।
  • अभिनय में ज्यादातर महिलाएं ही भाग लेती हैं और सारे दृश्य वही पेश करती हैं।
  • यह है लोकनाट्य छठ पूजा पार्क, डीडीए मैदान लक्ष्मी विहार में बहुत ही बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है और इस मौके पर लोक कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त यह लोकनाट्य बिहार के अलावा दिल्ली में पहली बार सामूहिक रूप से भी मनाया गया और तभी से वहां पर भी कई जगहों पर इसे मनाने की परंपरा है। विशेष तौर पर जो लोग मिथिला क्षेत्र से संबंधित है उनके द्वारा तो बहुत ही हर्ष उल्लास से यह नाटक पेश किए जाते हैं।
  • किराड़ी में भी यह पर्व व्यापक स्तर पर हर साल मनाया जाता है।
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्व सबसे पहले श्री कृष्ण के पुत्र ने अपनी बहन की खुशहाली के लिए मनाया था तभी से इस को मनाने का चलन है।
  • इस त्योहार में सामा चकेवा एवं शुक्ला की एक मूर्ति बनाई जाती है यह मूर्ति मिट्टी से तैयार की जाती है और शाम के समय इसे सजाया जाता है।
  • लोक गीत गाए जाते हैं और भाइयों के सुखद जीवन की कामना करते हुए महिलाएं काफी खुशी से झूम झूम कर नाचती गाती हैं।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक रोज ऐसा ही किया जाता है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन महिलाएं वस्त्र और अन्य सामानके साथ सामा की विदाई करती हैं।
  • इस प्रकार यह लोकनाट्य भी किया जाता है तथा त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

सामा चकेवा तिथि 2023 (Sama Chakeva 2023 Date)

  • सामा चकेवा का आरंभ: It will start on the day after Kartik Shashthi
  • सामा चकेवा की समाप्ति: on Kartik Purnima

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